Thursday, December 30, 2010

Happy New Year to all

नया साल मुबारक हो
आशा का दीपक / रामधारी सिंह "दिनकर"
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल दूर नही है
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है
चिन्गारी बन गयी लहू की बून्द गिरी जो पग से
चमक रहे पीछे मुड देखो चरण-चिनह जगमग से
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नही है
थक कर बैठ गये क्या भाई मन्जिल दूर नही है ।
Cited From:http://hi.literature.wikia.com/wiki, Dated २२-०४-2008